Description
पहला बयान
“और जब मेरी आँख खुली तो ं सिर्फ मेरा बेडरूम, मेरा लिबास अजनबी था बल्कि मेरा जिस्म और मेरी शक्ल भी अपनी नहीं थी । मैं अपने बंगले में सोया था पर आँख खुली बंगला नंबर 420 में ।
दूसरा बयान
“मैंने खुद अपनी लाश बंगला नंबर 420 में देखि है, इंस्पेक्टर ।”
तीसरा बयान
“धुएं का आदमी – हाँ – धुएं का आदमी । वह इंसानों का खून पीता है और जिसका भी खून वो पी लेता है वो उसका गुलाम होकर रह जाता है । बंगला नंबर 420 में उसकी पूजा होती है ।”
हॉरर, थ्रिल और सस्पेंस से लबरेज सुप्रसिद्ध लेखक परशुराम शर्मा का महाविशेषांक
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